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ता हु॑वे॒ ययो॑रि॒दं प॒प्ने विश्वं॑ पु॒रा कृ॒तम्। इ॒न्द्रा॒ग्नी न म॑र्धतः ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā huve yayor idam papne viśvam purā kṛtam | indrāgnī na mardhataḥ ||

पद पाठ

ता। हु॒वे॒। ययोः॑। इ॒दम्। प॒प्ने। विश्व॑म्। पु॒रा। कृ॒तम्। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। न। म॒र्ध॒तः॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:60» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:27» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को चाहिये कि वायु और बिजुली को यथावत् जानें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ययोः) जिनका (इदम्) यह (विश्वम्) समस्त जगत् वा (पप्ने) जिन से प्रवृत्त हुए व्यवहार में (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली (पुरा) पहिले (कृतम्) किये हुए इस विश्व को (न) नहीं (मर्धतः) नष्ट करते हैं (ता) उनको मैं (हुवे) ग्रहण करता हूँ ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिन वायु और बिजुली से सब जगत् व्यवहार करता है तथा जो संसार में स्थिर हो किसी को नष्ट नहीं करते हैं और विकार को प्राप्त हुए वे नष्ट करते हैं, मनुष्यों को चाहिये कि उनको जान कर यथावत् उपकार करें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैर्वायुविद्युतौ यथावद्विज्ञातव्यावित्याह ॥

अन्वय:

ययोरिदं विश्वं पप्ने याविन्द्राग्नी पुरा कृतमिदं विश्वं न मर्धतस्ताऽहं हुवे ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) तौ (हुवे) (ययोः) (इदम्) (पप्ने) ययोः सकाशाद्व्यवहारे (विश्वम्) सर्वं जगत् (पुरा) (कृतम्) (इन्द्राग्नी) वायुविद्युतौ (न) निषेधे (मर्धतः) हिंसतः ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! याभ्यां वायुविद्युद्भ्यां सर्वं जगत् व्यवहरति यौ जगति स्थित्वा कञ्चन न हिंसतो विकृतौ सन्तौ नाशयतस्तौ मनुष्यैर्विज्ञाय यथावदुपकर्त्तव्यम् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! ज्या वायू व विद्युतमुळे जगातील सर्व व्यवहार चालतात व जे जगात स्थिर बनून कुणालाही नष्ट करीत नाहीत व विकार झाल्यास ते नष्ट करतात. माणसांनी ते यथायोग्य जाणावे व त्यांचा उपयोग करून घ्यावा. ॥ ४ ॥